बदलती राजनीतिक धारा के बावजूद भगवान राम की भक्ति से अलग नहीं हो पाए थे कल्याण सिंह

बदलती राजनीतिक धारा के बावजूद भगवान राम की भक्ति से अलग नहीं हो पाए थे कल्याण सिंह

बदलती राजनीतिक धारा के बावजूद भगवान राम की भक्ति से अलग नहीं हो पाए थे कल्याण सिंह

रायबरेली, 23 अगस्त । पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ऐसे रामभक्त के रूप में ज्यादा चर्चित हुए जिन्होंने जिन्होंने राममंदिर के लिए अपनी कुर्सी का भी मोह नहीं रखा।

उत्तर प्रदेश में भाजपा की रामलहर के वह खेवनहार रहे हैं, लेकिन बाद के सालों में जब उन्होंने पार्टी छोड़ी तो उन पर राम और हिंदुत्व को भी छोड़ने का आरोप लगते रहे। जबकि शायद जमीनी हकीकत इससे जुदा ही रही कई ऐसे मौके रहे जहां उनकी रामभक्ति सार्वजनिक रूप से देखने को भी मिली। राजनीति में भले उनकी धारा बदलती रही लेकिन भगवान राम से वह कभी अलग नहीं हो पाए। अपनी पार्टी राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के गठन के बाद रायबरेली दौरे पर एक वाकये को सबने देखा और उनकी रामभक्ति को महसूस भी किया।

बात एक जून 2001 की है, जब वह ऊंचाहार के एक गांव कंशराजपुर में तय कार्यक्रम में पहुंचे थे। उन्हें जानकारी मिली कि इस गांव में एक रामभक्त संत रहते थे, जिनका काफी अरसे पहले निधन हो चुका है और गांव वालों ने मिलकर रामभक्त रमजीदास बाबा के मंदिर का निर्माण कराया गया है। कल्याण सिंह यह जानकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बिना तय कार्यक्रम और आग्रह के बावजूद वह उस समाधि स्थल पर जाने को कहने लगे। कुछ देर में ही वह पूरे ठाकुर मजरे धूता गांव निवासी शिव प्रकाश तिवारी के साथ मंदिर दर्शन करने पहुंच गए। इस नवनिर्मित मंदिर के वह प्रथम दर्शनार्थी बने। आनन-फानन में इस मंदिर का औपचारिक उद्घाटन भी पूरी विधि विधान के साथ कल्याण सिंह द्वारा ही किया गया था।इस दौरान वह भगवान राम के प्रति अपनी आशक्ति को भी वहां मौजूद लोगों से साझा करते रहें।