छठ पूजा: डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर संतान व परिजनों की सुख समृद्धि की कामना

छठ पूजा: डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर संतान व परिजनों की सुख समृद्धि की कामना

छठ पूजा: डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर संतान व परिजनों की सुख समृद्धि की कामना

अनूपपुर, 10 नवंबर । जिले में छठ पूजा व्रत में माताओं ने बुधवार को जिला मुख्यालय स्थित मडफ़ा तलाब (समतपुर) व तिपान नदी के तट पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर संतान व परिजनों की सुख समृद्धि की कामना का आशीष मांगा।

कोयलांचल नगरी जमुना कॉलरी भालूमाड़ा के श्रमिक नगर बदरा में सूर्य की उपासना का महापर्व बड़े हर्षोल्लास व श्रद्धा पूर्वक मनाया गया। सूर्यास्त के समय परासी रोड स्थित तालाब में सूर्य को प्रथम अध्र्य दिया गया। इस दौरान अनूपपुर में पुष्पराजगढ़ विधायक फुंदेलाल सिंह,भाजपा नेता मनोज द्विवेदी, अशीष त्रिपाठी,सतेन्द्र स्वा रुप दुबे,केए प्रसाद,चैतन्या मिश्रा सहित अन्य जन छठ तालाब पर पहुंच कर छठ माता का आशीर्वाद लिया।

छठ सूर्यदेव की बहन षष्ठी को समर्पित सूर्य उपासना का यह पर्व अगली सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य चढ़ाने के साथ समाप्त होगा। इन दोनों समय शाम और सुबह माताएं घाटों पर कमर तक भरे पानी में खड़ी होकर सूर्य को आह्वान करती है। जिसमें उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर वह हमेशा सूर्यदेव की उपासना करती रहेगी कहती है। पर्व में व्रतियों द्वारा विशेष प्रसाद ठेकुआ, चावल के लड्डू, गुजिया, मिठाई सहित मौसमी फल बांस की बनी हुई टोकरी (डाला) में डालकर देवकारी में रखा जाता है। पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल और पूजा का अन्य सामान लेकर डाला को घर का पुरुष अपने हाथों से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है। यह अपवित्र न हो इसलिए इसे सिर के ऊपर की तरफ रखते हैं।

ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब श्रीकृष्ण द्वारा बताए जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। तब उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला था।

लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। भैया दूज के कल होकर चतुर्थी को नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अध्र्य तथा चौथा दिन उगते सूर्य को अध्र्य देकर व्रत की समाप्ति के साथ सम्पन्न होता है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। जिसमें वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। छठ पर्व कार्तिक मास शुक्ल पक्ष के पष्ठी को मनाया जाने वाला हिन्दू पर्व है, सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार,झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। कहा जाता है यह पर्व बिहारीयों का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है।



बिजुरी में सूर्य मंदिर स्थित देवी तालाब पर छठ महा पूजन का आयोजन देवी तालाब में पुजारी अवध बिहारी मिश्रा ने समस्तज व्रतियों को डूबते सूर्य को अध्र्य दिलाकर सूर्य की उपासना का महापर्व बड़े हर्षोल्लास व श्रद्धा पूर्वक मनाया।