काशी में होली खेलने और हुड़दंग की अनुमति बाबा विश्वनाथ देते है, बाबा के भाल पहले चढ़ता है गुलाल

रंगभरी एकादशी से बुढ़वा मंगल तक उड़ता है अबीर गुलाल

काशी में होली खेलने और हुड़दंग की अनुमति बाबा विश्वनाथ देते है, बाबा के भाल पहले चढ़ता है गुलाल

वाराणसी, 17 मार्च। धर्म नगरी काशी में होली खेलने की परम्परा देश के अन्य भागों से इतर है। यहां रंगभरी एकादशी पर गौना कराने आये रजत पालकी पर सवार काशीपुराधिपति और उनके परिवार के रजत विग्रह पर अबीर गुलाल चढ़ा कर होली खेलने का रिवाज है।

काशी में मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ गौना के नेग में काशीवासियों को होली और हुड़दंग की अनुमति देते हैं। रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महादेव अपने गणों संग चिता भस्म की होली खेलकर राग और विराग के अंतर को मिटाते हैं। काशी में रंगभरी एकादशी से अबीर गुलाल की बरसात की जो शुरूआत होती है वह लगातार छह दिन तक चलती है। इसके बाद लोग होली मिलन समारोह के जरिये उल्लासपूर्ण माहौल में अबीर गुलाल उड़ा रंगों के पर्व पर मस्ती करते है। हालंकि बदलते दौर के साथ जोगीरा सा रा रा रा रा की धुनपर अलमस्त अंदाज में पिंगलबाजी करते युवाओं की टोली बनारस की गलियों में कम दिखती है। पहले के मुकाबले हुड़दंग भी कम हुआ है।

पर्व पर गोदौलिया,चेतगंज चौराहे पर कालोनियों के साथ गंगाघाटों पर नगाड़े की धुन पर और खास मटका फोड़ होली को देखने के लिए शहर में आये सैलानियों की भीड़ भी जुटती है। इस दौरान फाग गीतों पर थिरकने के साथ भांग और ठंडई का दौर भी चलता है। बुढ़वा मंगल तक ये हंसी ठिठोली अबीर गुलाल उड़ाने का दौर चलता रहता है।

शिव आराधना समिति के संस्थापक डॉ मृदुल मिश्र बताते है कि भांग और ठंडई बनारसी होली की जान है। इसके बिना होली की मस्ती और हुल्लड़बाजी की कल्पना भी नहीं कर सकते। भांग तो महादेव का प्रसाद हैं, जिसका रंग जमाने में मुख्य भूमिका होती है।

भांग और ठंडाई की मिठास और तरंग में ढोल-नगाड़ों की थाप पर जब काशी वासी मस्त होकर गाते हैं, तो आसपास जोगीरा सारारारा..की खास लयबद्ध ताल अलग माहौल बना देता है। डॉ मृदुल मिश्र बताते है कि होली के दिन शाम को चौसट्टीघाट स्थित चौसट्टी देवी के दरबार में लोग परम्परानुसार अबीर गुलाल चढ़ाते है। रंगों की होली समाप्त होने के बाद दरबार में हाजिरी लगाने लोग पहुंचते हैं।

होली पर्व पर ही श्री काशी विश्वनाथ दरबार , बाबा कालभैरव, मां अन्नपूर्णा, महामृत्युंजय मंदिर, मां शीतला, मां संकठा, मां पिताम्बरा, मां मंगला गौरी, मां दुर्गा, मां महालक्ष्मी, श्री बटुक भैरव, मां कामाख्या, श्री विश्वनाथ मंदिर (बीएचयू), बाबा कीनाराम दरबार, अघोर दरबार पड़ाव में भी पूरे आस्था के साथ अबीर गुलाल अर्पित किया जाता है।