औरंगजेब ने बनारस का नाम बदल कर मुहम्मदाबाद रखा था

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को तोप से उड़ाने का जारी किया था फरमान, बनारस की गलियों में दस दिनों तक भीषण युद्ध हुआ था

औरंगजेब ने बनारस का नाम बदल कर मुहम्मदाबाद रखा था

वाराणसी, 10 मई । ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी के साथ विग्रहों के सर्वे और वीडियोग्राफी मामले में मंगलवार को सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत में होने वाली सुनवाई पर वाराणसी सहित पूरे देश की नजर है। अदालत में एडवोकेट कमिश्नर को बदले जाने को लेकर जहां सुनवाई होगी। वहीं, अब तक हुए सर्वे की रिपोर्ट भी एडवोकेट कमिश्नर को न्यायालय में पेश करना है। ऐसे में ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर के रहस्यों को जानने के लिए लोगों में उत्सुकता बढ़ती जा रही है।

बताया जा रहा है कि ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी परिसर में ज्ञानवापी मस्जिद के पास स्वास्तिक के दो निशान सर्वे में देखे गये हैं। काशी के इतिहास पर स्वतंत्र तौर पर शोध कर रहे बनारस बार के पूर्व महामंत्री अधिवक्ता नित्यानंद राय ने बताया कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने नौ अप्रैल 1669 को फरमान जारी किया कि बनारस के सभी मंदिर व संस्कृत पाठशालाएं ध्वस्त कर दिये जाय। बादशाह के फरमान जारी होते ही मुगलिया सेना ने बनारस पर धावा बोल दिया। अधिवक्ता नित्यानंद ने बताया कि यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खाँ द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। नित्यानंद ने अध्ययन का हवाला देकर बताया था कि पूरे दस दिनों तक बनारस की गलियों में भीषण युद्ध होता रहा। काशी के बूढ़े ,बच्चे, औरतों तक ने मंदिरों के लिए अपना बलिदान कर दिया। मंदिर के सभी महंत लड़ाई में मारे गये। किन्तु विश्वनाथ मंदिर को ढहाने में सफलता न मिल सकी। तब बनारस के तत्कालीन फौजदार ने चुनार किले से तोप मंगवाया और विश्वनाथ मंदिर पर गोले बरसाये। तब कहीं जाकर विशाल और मजबूत मंदिर टूट पाया। जिसका एक भाग आज भी अवशेष के रूप में दिखाई देता है।

अधिवक्ता नित्यानंद बताते है कि औरंगजेब को सूचना भिजवाई गयी कि फरमान के मुताबिक काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर उस पर मस्जिद का निर्माण करा दिया गया है। इस प्रकार मंदिर तोड़ने में दस दिन और मस्जिद बनवाने में पांच महीने का समय लगा। नित्यानंद बताते हैं कि अध्ययन में पता चला कि औरंगजेब ने बनारस का नाम बदलकर मुहम्मदाबाद रख दिया था। और टकसाल में इस नाम के सिक्के भी चलवाये थे। नया नाम औरंगजेब के मरते ही धीरे धीरे प्रचलन से बाहर हो गया।

गौरतलब हो कि ज्ञानवापी में नया मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार को लेकर पं. सोमनाथ व्यास, डा. रामरंग शर्मा व अन्य ने 15 अक्टूबर 1991 को सिविल जज (सिडि.) वाराणसी की अदालत में वाद दायर किया था। इसमें कहा गया कि विवादित स्थल स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का अंश है। अदालत में स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की ओर से दलील दी गई कि 15 अगस्त 1947 को ज्ञानवापी विवादित स्थल का स्वरूप मंदिर का ही था। इसके नीचे 15 वीं शताब्दी के मंदिर का अवशेष है। ढांचे की अंदरूनी आकृति मंदिर की है और ऊपर तीन गुंबद बना दिए गए हैं। इस मुकदमें प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से आपत्ति की गई। दलील दी गई कि यह वाद पोषणीय नहीं है क्योंकि पूजा-स्थल विशेष उपबंध अधिनियम, 1991 की धारा -चार से बाधित है। तब न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद उक्त वाद को पूजा-स्थल विशेष उपबंध अधिनियम की धारा-चार से बाधित होने के सम्बंध में दावे में मांगे गए अनुतोष मे संशोधन के लिए आदेश दिया एवं संशोधन के साथ दावा चलने का आदेश दिया गया।

इस मामले में दोनों पक्षों ने सिविल रिवीजन जिला जज वाराणसी में दाखिल किया गया। इसमें अपर जिला जज (प्रथम) की अदालत ने सिविल जज के निर्णय को निरस्त कर दिया और कहा कि बिना मौके का साक्ष्य लिए बगैर यह नहीं कहा जा सकता है कि विवादित स्थल का धार्मिक स्वरूप मंदिर का है या मस्जिद का। अदालत ने पूरे परिसर का विस्तृत साक्ष्य संकलित कराने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड, लखनऊ की ओर से वर्ष 1998 में हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गईं।