रेल चलाने में तकनीकि ज्ञान के साथ साहित्यिक ज्ञान भी जरूरी : पुष्कर

पुस्तक से ज्ञान अर्जित करना आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की तरह

रेल चलाने में तकनीकि ज्ञान के साथ साहित्यिक ज्ञान भी जरूरी : पुष्कर

प्रयागराज, 12 अप्रैल । रेल को बेहतर तरीके से चलाने के लिए तकनीकि ज्ञान के साथ-साथ साहित्यिक ज्ञान भी जरूरी है। वह व्यक्ति जिसके पास तकनीकि ज्ञान के साथ-साथ साहित्यिक ज्ञान है, वह उस व्यक्ति से बेहतर रेल चलाएगा जिसके पास केवल तकनीकि ज्ञान ही है।

उक्त विचार राजभाषा अधिकारी शेषनाथ पुष्कर ने मानिकपुर रेलवे स्टेशन पर सरकारी कामकाज में हो रही राजभाषा हिंदी के प्रगति की समीक्षा के दौरान व्यक्त किया। स्टेशन प्रबंधक मोहन पासवान की अध्यक्षता में स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति, मानिकपुर की बैठक हुई, जिसका संचालन शेषनाथ पुष्कर, राजभाषा अधिकारी प्रयागराज ने किया।

उन्होंने कहा कि रेलवे अधिकारी एवं कर्मचारियों को हिंदी साहित्य से वैचारिक एवं भावनात्मक रूप से जोड़कर सरकारी कामकाज में राजभाषा हिंदी का प्रयोग बढ़ाने के उद्देश्य से रेलवे में हिंदी पुस्तकालय खोले गए हैं। यह सत्य है कि रेल को चलाने के लिए तकनीकी ज्ञान चाहे वह सिविल इंजीनियरिंग का हो, चाहे वह मैकेनिकल इंजीनियरिंग का हो, चाहे वह बिजली इंजीनियरिंग का हो जरूरी है। उन्होंने आगे कहा कि मानिकपुर स्टेशन पर स्थापित हिंदी पुस्तकालय का सभी कर्मचारी लाभ उठाएं। क्योंकि व्यक्ति के जीवन में जब उदासीनता या निराशा की भावना घर करती है, तो साहित्यिक ज्ञान से व्यक्ति की ये भावनाएं दूर होती है और व्यक्ति के जीवन में खुशी एवं उत्साह आता है।

समिति के सदस्यों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि पुस्तक से ज्ञान अर्जित करना आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की तरह है। इसमें साइड इफेक्ट नहीं होता है और इसकी जानकारी भी विश्वसनीय होती है। जबकि नेट, मोबाइल, कम्प्यूटर से ज्ञान अर्जित करना एलोपैथी चिकित्सा पद्धति की तरह है। इसमें साइड इफेक्ट भी होता है। इससे निकलने वाले रेडिएशन आंख, कान एवं हार्ट को नुकसान पंहुचाते हैं। अंत में उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण सरकारी काम तो आप लोग नेट से करें पर किताब पढ़ने के लिए पुस्तकों का सहारा लें। यह व्यक्ति और संगठन दोनों के लिए लाभदायक है।