बिशप के घर में अकूत संपत्ति और मतान्तरण का खेल

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

बिशप पीसी सिंह कक्षा बारहवीं के बाद मतान्तरित हुआ और उसकी मजहबी शिक्षा दिल्ली में हुई। दिल्ली से लौट कर उसने लगभग पांच वर्षों तक मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर के एक चर्च में बतौर पादरी काम किया। इसके बाद उसे बिशप की पदवी दे दी गई। यहां तक तो सब ठीक है, किसी के बारे में कहा जा सकता है कि धर्म, मत, पंथ व्यक्तिगत विषय है और मतान्तरण भी किसी विचार के प्रभाव में आकर संभव है, किंतु लोभ-लालच में मतान्तरण कराने एवं करने को क्या भारतीय संविधान अनुमति देता है? भारत का कानून साफ तौर पर कहता है कि किसी को डरा-धमका या लालच देकर मत एवं मजहबी परिवर्तन नहीं कराया जा सकता है। यहां बिशप पीसी सिंह के बारे में बताएं कि आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा की गई जांच में यह खुलासा हुआ है कि बिशप पीसी सिंह द्वारा शैक्षणिक संस्थाओं से वर्ष 2004-5 से वर्ष 2011-12 के बीच करीब दो करोड़, 70 लाख रुपये की राशि ईसाई पांथिक संस्थाओं को स्थानांतरित की गई। यह देखने वाली बात होगी कि क्या इस राशि का उपयोग मतान्तरण के लिए किया गया है? यदि किया गया है तो यह निश्चित ही भारतीय संविधान की मूल अवधारणा और कानून का उल्लंघन होगा।

आज ईसाई मिशनरी एवं इनकी शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा मतान्तरण किसी से भी छिपा नहीं है। अभी हाल ही में मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में ईसाई मिशनरी द्वारा मतान्तरण कराने का मामला सामने आया है। ये लोग गांव के लोगों को सनातन हिन्दू धर्म में बुराई बता कर मतान्तरण के लिए उकसा रहे थे। बालाघाट जिले में सरकार द्वारा संचालित गांव के विद्यालय में शिक्षक छतर सिंह कात्रे ने प्रार्थना सभा का आयोजन किया, जिसमें बहला-फुसला कर लोगों को ईसाई मत अपनाने के लिए कहा गया । साथ ही बात न मानने पर ईश्वर द्वारा बुरा किए जाने की बात कह कर डराया गया। इंदौर में सतप्रकाशन संचार केंद्र के अंदर एक कैथोलिक प्रोटेस्टेंट प्रार्थना सेवा स्थल में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करने मामला उजागर हुआ। छतरपुर जिले के खजुराहो स्थित मिशनरी कॉन्वेंट स्कूल की प्रिंसिपल सिस्टर भाग्य अपने स्कूल की शिक्षिका रूबी सिंह की खराब आर्थिक स्थिति को देखकर उन्हें लालच देकर मतान्तरित करने का प्रयास कर रही थीं।

विदिशा जिले के सेंट मेरीज पीजी कॉलेज में अखिल भारतीय विद्याथी परिषद जगह-जगह हो रहे अपने तय कार्यक्रम के अनुसार भारत माता की आरती करना चाहती थी, किंतु प्रबंधन ने इसकी अनुमति नहीं दी। बल्कि फादर बीजू टोटनकारा ने कहा कि यह अल्पसंख्यकों की संस्था है, ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने दिया जाएगा। अब इस पर विचार होना चाहिए कि यदि किसी अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान में पढ़ने वाले अधिकांश बहुसंख्यक हैं, तब उस स्थिति में क्या सिर्फ अल्पसंख्यक संस्थान होने भर से भारत माता की आरती नहीं होने दी जा सकती है? मध्य प्रदेश की तरह ही छत्तीसगढ़ में भी अनेक मतान्तरण की घटनाएं हुई हैं। 

छत्तीसगढ़ में ईसाई मिशनरियों द्वारा शुरुआती दौर में शिक्षा, स्वास्थ्य और कानूनी सहायता देकर अनुसूचित जनजाति के लोगों को अपने करीब लाया गया और उसके बाद उनका मतान्तरण कराना जारी रखा, अब यहां इस मतान्तरण का अनेक स्थानों पर विरोध हो रहा है। हाल ही में छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण एकत्र होकर सड़क पर निकल आए । उन्होंने कहा कि हमारे भाई-बंधु खुद का धर्म छोड़कर ईसाई हो रहे हैं। इससे हमारी संस्कृति खतरे में है। उत्तर प्रदेश के कानपुर में कल्याणपुर के गूबा गार्डन में गुड शेफर्ड एजुकेशन सेंटर के चर्च में बिशप पंकज मलिक की देखरेख में धर्म परिवर्तन का खेल हिन्दू संगठनों ने पकड़ा था। एक बड़ी घटना प्रयागराज की अनीता शर्मा से जुड़ी है, जिसकी पहले लॉकडाउन के दौरान मदद की गई, फिर कुछ दिन बाद उसे घर से हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरें हटाने के बदले 10 लाख रुपये और राशन की पेशकश की गई।

वस्तुत: ऐसी ईसाई मतान्तरण की अनेक सच्ची कहानियां सिर्फ हिन्दी प्रदेश तक सीमित नहीं हैं। देश के हर राज्य में इस प्रकार की घटनाएं प्रतिदिन घट रही हैं। भारत में पूर्वोत्तर के कैथोलिक चर्च में बिशप और पादरियों की सभा में ज्यादा से ज्यादा धर्म परिवर्तन कर लोगों को 'मसीह के पास लाने' की अपील की जा रही है। गुवाहाटी के आर्कबिशप जॉन मूलाचिरा ने कोहिमा के सेंट मैरी कैथेड्रल चर्च में पूर्वोत्तर के बिशपों को ये अपीलनुमा आदेश दिया गया है। हद तो यह है कि ईसाई मिशनरी छोटे-छोटे बच्चों तक को अपना शिकार बनाने से नहीं चूक रहे। तमिलनाडु के एरोड जिले की मोदकुरुचि पंचायत कस्बे में सात साल की एक छोटी लड़की को दो मिशनरी महिलाएं उषा रानी और वर्जीनिया डराकर अपने साथ चर्च ले जाने लगीं। बच्ची को ये कहकर डराया गया था कि चर्च नहीं आओगी तो तुम्हारे माता-पिता बीमार होकर मर जाएंगे और वो भूतों के बस में हो जाएगी। तमिलनाडु की ही एक अन्य घटना में तिरुवन्नामलाई में एक 13 वर्षीय आदिवासी लड़की का कुछ महीने पहले एक ईसाई पादरी ने उसके गांव से अपहरण कर मतपरिवर्तन करा दिया। महीनों की गहन खोज के बाद लड़की को पादरी की बहन के घर से पुलिस ने बरामद किया ।

जुगियाल, पंजाब का अर्धपहाड़ी इलाका है। इसके शाहपुरकंडी के साथ लगते गांव जेनी ऊपरली में एक 14 वर्षीय सिख बच्ची का ईसाई मिशनरी ने जबरन कन्वर्जन करवा दिया। कुछ दिन पहले परिवार के लोग गुरुद्वारा साहिब गए तो बच्ची ने वहां कड़ाह प्रसाद (हलवे का प्रसाद) व लंगर छकने से इंकार कर दिया। बच्ची की हरकत देख परिवार वालों ने जब पूछा तो पता चला कि उनकी नाबालिग बेटी का कन्वर्जन हो चुका है और ईसाई प्रचारक उसे ईसा मसीह की भेड़ में परिवर्तित कर चुके हैं। इसी तरह से पंजाब के जालंधर में ताजपुर चर्च के पादरी बलविंदर सिंह ने शुभम पंडित की बहन के कैंसर के इलाज के नाम पर पवित्र जल और तेल से उनका मत परिवर्तन कर दिया। वस्तुत: मतान्तरण का खेल कहां नहीं चल रहा? जेल में भी मतान्तरण चल रहा है। महिला कैदियों के बच्चों की शैक्षिक स्थिति पर किए गए एक अध्ययन में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने पाया कि बाल सुधार गृहों, छात्रावासों और जेलों में ईसाई न होने पर भी बच्चों को बाइबिल पढ़ाई जा रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी पाया है कि कई ईसाई मिशनरी संगठनों को मिलनेवाला विदेशी अनुदान मतान्तरण कराने में उपयोग किया जा रहा है ।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवन भर ईसाई मिशनरियों द्वारा सेवा कार्यों के नाम पर किए जाने वाले धर्म परिवर्तन के विरुद्ध रहे। जब अंग्रेज भारत से जाने लगे तो ईसाई मिशनरी लॉबी ने प्रश्न उठाया कि स्वतंत्र भारत में क्या उन्हें धर्म परिवर्तन करते रहने दिया जाएगा, तो गांधी जी ने इसका जवाब न में दिया। उन्होंने क्रिश्चियन एसोसिएशन ऑफ मद्रास की एक सभा को संबोधित करते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि "धर्मांतरण राष्ट्रांतरण है।" वस्तुत: महात्मा गांधी नहीं चाहते थे कि भारत में मतान्तरण हो, उनकी मंशा के अनुरूप आज कुछ राज्यों ने हिम्मत दिखाई है और मतपरिवर्तन के खिलाफ सख्त कानून भी बनाए हैं, ताकि राष्ट्रांतरण रोका जा सके, किंतु उसके बाद भी कहना होगा कि भारत में तेजी से मतान्तरण का खेल जारी है । बिशप पीसी सिंह जैसे लोग आपके आसपास हर जगह मौजूद हैं।उन्हें पहचानना आज किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

अंत में यही कि मतान्तरण में लगे लोग जरा गंभीरता से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के धर्मांतरण के विषय पर कहे गए उनके इन शब्दों पर गौर करें- "यदि ईसाई मिशनरी समझते हैं कि ईसाई धर्म में धर्मांतरण से ही मनुष्य का आध्यात्मिक उद्धार संभव है, तो आप यह काम मुझसे या महादेव देसाई (गांधी जी के निजी सचिव) से क्यों नहीं शुरू करते? क्यों इन भोले-भाले,अबोध, अज्ञानी, गरीब और वनवासियों के धर्मांतरण पर जोर देते हैं? यह तो बेचारे ईसा और मोहम्मद में भेद नहीं कर सकते और न आपके धर्म उपदेश को समझने की पात्रता रखते हैं। वे तो गाय के समान मूक और सरल हैं। जिन भोले-भाले अनपढ़ दलितों और वनवासियों की गरीबी का दोहन कर के आप इन्हें ईसाई बनाते हैं वह ईसा के नहीं 'चांवल' अर्थात पेट के लिए ईसाई होते हैं।"

(लेखक, फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)