आपातकाल के 46 साल : विद्यालय चलाने पर शिक्षक को भेजा जेल, पुल को बम से उड़ाने का लगा झूठा आरोप

जेल में गूंजे रहे थे लोकनाथ जयप्रकाश नारायण जिंदाबाद के नारे

आपातकाल के 46 साल : विद्यालय चलाने पर शिक्षक को भेजा जेल, पुल को बम से उड़ाने का लगा झूठा आरोप
बलरामपुर, 25 जून। आज ही के दिन मध्य रात्रि को विश्व के महान लोकतंत्र भारत पर कांग्रेस की इंदिरा सरकार ने आपातकाल थोपा था। लोकतंत्र के इतिहास में इसे काला अध्याय घोषित किया गया है। जबरदस्ती थोपे गए इस जघन्य काल की यातनाओं का दर्द आज भी लोग महसूस करते हैं। 
 
ऐसे ही जनपद के तुलसीपुर निवासी दादाजी के नाम से प्रसिद्ध लोकतंत्र सेनानी सत्यनाथ जब उस दौर की दास्तां बयां करते हैं तो सिहर उठते हैं। सुनने वालों की आंखों से धाराएं बहने लगती हैं। रौंगटे खड़े हो जाते हैं। इन्होंने जेल में 22 महीने सजा काटी। यातनाएं दी गईं। इनका जूर्म मात्र यह था कि विद्यालय चला रहे थे। 
 
उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में बताया कि विद्यालय चलाने की सजा 22 महीने की जेल मिली। उनसे कहा गया कि स्वीकार कर लो कि ''इंदिरा गांधी मुर्दाबाद के नारे लगाए हो तो तुम्हारी सजा कम हो सकती है।''
 
तुलसीपुर के जरवा रोड निवासी 71 वर्षीय लोकतंत्र सेनानी सत्यनाथ पुत्र भोगी प्रसाद वर्तमान में एक प्राइवेट विद्यालय के प्रबंधक हैं। आपातकाल के समय की बातें डबडब आंखों से बताते हुए कहते हैं कि उस समय क्षेत्र के नेपाल सीमा के पास जरवा में राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़ी आनंद मार्ग विद्यालय के प्रधानाचार्य थे। 26 जून, 1975 की सुबह देश में आपातकाल की सूचना मिली। पूरे क्षेत्र में भय का माहौल व्याप्त था। किसी को नहीं पता था कि क्या होगा।
 
बताते हैं कि जुलाई में विद्यालय खोलना था। सत्र प्रारंभ करने को लेकर विद्यालय में तैयारी चल रही थी। आपातकाल की घोषणा के साथ कई संगठनों पर पाबंदी लगा दी गई थी, जिनमें आनंद मार्ग संस्थान भी था। विद्यालय संस्था पर भी पाबंदी लगाए जाने की सूचना पर तकरीबन वह एक सप्ताह विद्यालय में ही रहे। 04 जुलाई, 1975 को विद्यालय से थोड़ी दूरी पर नेपाल सीमा के पास अभिभावकों से मिलने गए थे। वहां से लौटते समय तुलसीपुर थाने के हवलदार श्रीकांत मिले और कहा कि अब विद्यालय जाने की जरूरत नहीं है। हमारे साथ तुलसीपुर थाना चलना होगा।
 
उन्होंने बताया कि थाना पर तुलसीपुर क्षेत्र के चार लोग और बैठाए गये थे। अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। हम सभी पांचों लोगों को 06 जुलाई को गोंडा जेल में भेजा गया। उस समय बलरामपुर गोंडा जनपद में ही था। गोंडा जेल में क्षेत्र के तकरीबन 300 लोग थे, जिन्हें आपातकाल की घोषणा के उपरांत बंद किया गया था।

 
सत्यनाथ बताते हैं कि हम सभी को पहुंचने पर क्षेत्र के मौजूद लोगों ने जेल में ही इंदिरा गांधी मुर्दाबाद, जयप्रकाश नारायण जिंदाबाद के नारे लगाये। जेल में रहने को उपरांत बताया गया कि उन्हें तुलसीपुर स्थित नकटी नदी के पुल को बम से उड़ाने की योजना बनाने के आरोप में लाया गया है। यह झूठा आरोप था।
बताते हैं कि 11 महीने की जेल की सजा के उपरांत बाहर निकलते ही जेल के बाहर पुनः पुलिस ने पकड़ लिया। उस समय के तत्कालीन डीएम हर्षवर्धन सनवाल के समक्ष लाया गया। वहां कहा गया कि आप स्वीकार कर लीजिए कि इंदिरा गांधी मुर्दाबाद के नारे लगाएं हैं तो सजा कम हो सकती है। लेकिन स्वीकार नहीं किया गया और वहां से उन्हे दोबारा 11 माह के लिए जेल भेजा गया। दूसरी बार जेल से छूटने के उपरांत काफी दिनों तक पुलिस निगरानी करती रही। बाद मे कांग्रेस सरकार ने ही केस वापस लिये जाने की घोषणा की। वर्ष 2006 में उन्हें लोकतंत्र सेनानी का दर्जा मिला।