प्रतापपुर की रामलीला का 100वां साल, पढ़िए अनमोल विरासत की पूरी कहानी
4 से 8 दिसंबर तक मनाया जाएगा शताब्दी महामहोत्सव
(रिपोर्ट- अभिषेक मिश्र)
शिक्षा और सांस्कृतिक विरासत को समेटे प्रयागराज शहर दुनियाभर में संगम और कुंभ मेले के लिए विख्यात है। शहर से करीब 35 किमी दूर प्रतापपुर गांव भी एक अनमोल विरासत को संजोए हुए है। वह है प्रभु श्री राम की लीला का मंचन... जी हां ऐतिहासिक श्री रामलीला मंडल।
प्रतापपुर ब्लॉक के ठीक सामने करीब 300 मीटर की दूरी पर है वह मंच, जिसे 99 बार प्रभु श्री राम की कथाओं के मंचन का गौरव प्राप्त है। समय बीता, पीढ़ियां बदलीं पर नहीं बदली वो परंपरा। अंग्रेजी हुकूमत के समय साल 1922 में जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, क्षेत्र के जमींदार स्वर्गीय ठाकुर हरिश्चंद्र बहादुर सिंह ने सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकजुटता और प्रभु श्री राम के बताए मार्ग पर बढ़ने का सबक सीखने के लिए रामलीला का मंचन शुरू कराया। उनका जन्म वर्ष 1900 में हुआ था और आजादी से ठीक तीन साल पहले साल 1944 में निधन हो गया।
हरिश्चंद्र बहादुर सिंह के सुपुत्र ठाकुर राजेश्वर प्रताप सिंह ने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए रामलीला को जारी रखा। आजादी के बाद रामलीला के मंचन को देखने के लिए लोग 20 किमी दूर से भी चले आते थे। स्व. राजेश्वर प्रताप सिंह क्षेत्र की बड़ी शख्सियत थे। समाज में उनके कद की वजह से ही देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी भी प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) आती थीं तो उनसे मिलने प्रतापपुर जरूर आती थीं।
यहां आज भी उसी उत्साह और उमंग के साथ रामलीला का मंचन और दर्शन किया जाता है। ठाकुर हरिश्चंद्र बहादुर सिंह
ने अपने आखिरी समय में सुपुत्र राजेश्वर प्रताप सिंह से कहा था कि बेटा, मेरी मौत भी हो जाए तो भी रामलीला बंद नहीं होनी चाहिए।
हुआ भी ऐसा ही। इस साल प्रतापपुर की इस प्राचीन रामलीला के 100 साल पूरे हो रहे हैं। 4 दिसंबर से 8 दिसंबर तक प्रतापपुर में शताब्दी महामहोत्सव की तैयारियां चल रही हैं।