फर्जी मार्कशीट पर बने टीचर की याचिका एक लाख हर्जाना के साथ खारिज
कोर्ट ने कहा, न्यायिक सिस्टम गलत लोगों को संरक्षण देने के लिए नहीं
प्रयागराज, 31 अगस्त । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि फर्जी मार्कशीट व प्रमाणपत्र के आधार पर नियुक्त सहायक अध्यापक को पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने वेतन भुगतान के लिए दाखिल याचिका एक लाख रूपए हर्जाने के साथ खारिज कर दी है और याची अध्यापक के हर्जाना एक माह में जमा करने का निर्देश दिया है। जमा न करने पर जिलाधिकारी राजस्व प्रक्रिया से वसूली करेंगे।
कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि न्यायिक सिस्टम गलत लोगों को संरक्षण देने के लिए नहीं है। देश झूठ पर जीवित नहीं रह सकता। कानून के शासन को संरक्षण देने में कोर्ट की वृहद भूमिका है।
कोर्ट ने कहा कि याची के पिता बीएसए कार्यालय संतकबीर नगर में लिपिक थे। फर्जी अंकपत्र व टीईटी प्रमाणपत्र की जानकारी उस समय के बीएसए महेंद्र प्रताप सिंह को भी थी। प्रबंध समिति से नियुक्ति कराकर अनुमोदन भी कर दिया। शिकायत मिलने पर जांच बैठाई गई और वेतन भुगतान रोक दिया गया। कोर्ट ने राज्य सरकार को बीएसए रहे महेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ तुरंत विभागीय कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने पं दीनदयाल पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिटिया बेलहर संतकबीरनगर के सहायक अध्यापक मंजुल कुमार की याचिका पर दिया है। कोर्ट के आदेश पर सहायक निदेशक बेसिक, वित्त एवं लेखाधिकारी बेसिक शिक्षा संतकबीरनगर पेश हुए। हलफनामा दाखिल कर बताया कि याची की नियुक्ति 15 मार्च 16 को हुई। 17 जुलाई 16 को उसने ज्वाइन किया। शिकायत पर 7 अप्रैल 17 को जांच बैठाई गई और वेतन रोका गया। प्रबंध समिति के विज्ञापन पर याची की नियुक्ति की गई थी। बीएसए ने नियुक्ति को अनुमोदित किया था। 5 जून 18 को कूटकरण व धोखाधड़ी के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई है।
याची ने महात्मा गांधी पी एस कालेज गोरखपुर से जिस अनुक्रमांक पर बीएससी का अंकपत्र पेश किया है। वह अनुक्रमांक तुफैल अहमद को आवंटित था। इंटरमीडिएट का अनुक्रमांक भी फर्जी पाया गया। याची के पिता जो बीएसए कार्यालय में लिपिक थे, उसने 2011 का टीईटी प्रमाणपत्र भी फर्जी बनाया। अनुक्रमांक कल्पना त्रिपाठी के नाम है। जो फेल हो गई थी।