पितृपक्ष : अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए काशी में उमड़ रहे श्रद्धालु,गंगाघाट पर पिंडदान,तर्पण

अनादि विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर मेला सरीखा नजारा, पूरे श्रद्धाभाव से पिंडदान, तर्पण और त्रिपिंडी श्राद्ध कर रहे लोग

पितृपक्ष : अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए काशी में उमड़ रहे श्रद्धालु,गंगाघाट पर पिंडदान,तर्पण

वाराणसी,03 अक्टूबर । पितृपक्ष में धर्म नगरी काशी में अपने पुरखों के प्रति श्रद्धा समर्पण का सिलसिला शुरू हो गया है। गंगाघाटों सहित अनादि विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर पूरे देशभर से श्रद्धालुओं (वंशजों )का रेला उमड़ रहा है। अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने के लिए श्रद्धालु अलसुबह से गंगाघाटों के साथ पिशाचमोचन कुंड पर लोग पहुंच रहे हैं। दशाश्वमेध तीर्थ क्षेत्र में दक्षिण भारतीय श्रद्धालु पहुंच रहे है। मंगलवार को पितृपक्ष के पंचमी तिथि पर लोग पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदित कर श्राद्ध, तर्पण पूरे श्रद्धाभाव से करते दिखे।

काशी में अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदित करने के लिए पत्नी के साथ आए हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी के खाता प्रबंधक (अकाउंट मैनेजर ) अमित कुमार पांडेय ने पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडिक श्राद्ध कर बताया कि पितृपक्ष में सनातनी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते है। ऐसा करने से पितरों के प्रसन्न होने पर घर में सुख शांति आती है।



पिशाचमोचन कुंड स्थित शेरवाली कोठी के पंडा पं. श्रीकांत मिश्र, प्रदीप पांडेय ने बताया कि पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध कर्म से पितृदोष से मुक्ति के साथ पितरों की शांति भी होती है। पितरों का तर्पण न करने से उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा भी मृत्यु लोक में भटकती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है।

उन्होंने बताया कि पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके जीवन में सभी कार्य मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, वंश बेल की वृद्धि होती है। पितृदोष के शमन के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। सनातन धर्म में ये श्राद्ध कर्म सबके लिए है। पूर्वजों की आत्मा की प्रसन्नता के लिए कम से कम तीन बार त्रिपिंडी श्राद्ध अवश्य वंशजों को करना चाहिए।

प्रदीप पांडेय बताते हैं कि भटकती आत्माओं की शांति के लिए पिशाचमोचन कुंड के सात घाटों पर त्रिपिंडी श्राद्ध लोग करा रहे है। उन्होंने बताया कि पिशाचमोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। ये श्राद्ध कर्म काशी के अलावा कहीं और नहीं होता। पितृ पक्ष में पितरों के लिए 15 दिन स्वर्ग का दरवाजा खोल दिया जाता है।