हरि प्रबोधिनी एकादशी पर श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा में लगाई डुबकी,किया दान पुण्य
चार मास की योग निद्रा से जागे जगत के पालनहार श्री हरि, मांगलिक कार्य शुरू होगा
15 नवम्बर । कार्तिक शुक्ल पक्ष की हरि प्रबोधिनी एकादशी (देव उठनी एकादशी) पर सोमवार को काशी पुराधिपति की नगरी में हजारों श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई । गंगा घाटों पर दान पुण्य के बाद श्रद्धालुओं ने बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूजन कर नये गन्ने का नेवान(सेवन प्रारम्भ) भी किया। प्रबोधिनी एकादशी पर ही चराचर जगत के पालनहार श्री हरि भी चार मास की योग निद्रा से जाग गये। श्री हरि के योग निद्रा से जागने के बाद मांगलिक कार्य शुरू हो गए।
प्रबोधिनी एकादशी पर अचला नामक योग में लोग भोर से ही गंगा स्नान के लिए घाटों पर पहुंचते रहे। गंगा घाटों पर स्नान ध्यान के बाद लोगों ने दानपुण्य कर श्री हरि की आराधना की। गंगा स्नान के लिए प्राचीन दशाश्वमेध घाट,राजेन्द्र प्रसाद घाट, अहिल्याबाई घाट, पंचगंगा घाट, अस्सीघाट, सामनेघाट,भैसासुर और खिड़कियाघाट पर सर्वाधिक भीड़ जुटी रही। स्नान पर्व पर शहर के प्रमुख चौराहों, मोहल्लों में लगे गन्ने की अस्थाई दुकानों पर जमकर खरीदारी हुई। शहर के चौकाघाट रेलवे ओवरब्रिज के समीप गन्ने की खरीददारी के लिए लोग जुटे रहे।
- तुलसी माता की पूजा, शालीग्राम से विवाह रचाया गया
हरि प्रबोधिनी एकादशी पर गंगा स्नान ध्यान के बाद सैकड़ों श्रद्धालुओं ने गंगा किनारे ईख आदि से मंडप बनाकर तुलसी माता की पूजा की और तुलसी जी का विवाह शालीग्राम से रचाया। पर्व पर पंचगंगा घाट स्थित बिन्दुमाधव मंदिर में भगवान श्री हरि का भव्य श्रृंगार किया गया। भोर में ठीक चार बजे भगवान बिन्दु माधव की काकड़ा आरती उतारी गयी। इसके पश्चात भगवान को मक्खन एवं श्रीखण्ड का लेपन कर आरती उतारी गयी।
ज्ञातव्य है कि, देवशयनी एकादशी से चराचर जगत के स्वामी श्री हरि विष्णु भगवान चार मास के लिए सो जाते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को योग निद्रा में जाने के बाद श्री हरि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को योग निद्रा से जागते हैं। देवशयनी एकादशी से चार महीने तक भगवान विष्णु के योग निद्रा में रहने के चलते मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं। उनके उठने पर हरि प्रबोधिनी एकादशी से मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं।