महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक को लेकर मंदिर में भक्तों की जनसैलाब

महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक को लेकर मंदिर में भक्तों की जनसैलाब

महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक को लेकर मंदिर में भक्तों की जनसैलाब

कटिहार, 01 मार्च । महाशिवरात्रि पर जिले के सभी शिव मंदिर में बाबा भोलेनाथ के जलाभिषेक को लेकर सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ी है। विशेषकर आजमनगर प्रखंड स्थित बाबा गोरखनाथ धाम मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु भोलेनाथ को जलाभिषेक करने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते दिखे। ऐसे में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मंदिर एवं जिला प्रशासन ने अलग से बंदोबस्त किया है ताकि सभी भक्त अच्छी तरह से पूजा कर सकें। प्रशासन ने पुरुष और महिला श्रद्धालुओं के लिए अलग व्यवस्था की है। महाशिवरात्रि के रात में बाबा गोरखनाथ धाम मंदिर प्रांगण में भव्य तरीके से शिव विवाह का भी आयोजन किया गया।

मंदिर पूजा समिति के सदस्य अक्षय सिंह ने बताया कि बाबा गोरखनाथ धाम शिवमंदिर की प्रसिद्धि देश से विदेश तक है। यहां सावन के पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के दिन बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, नेपाल, तिब्बत और भूटान से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक करने आते हैं। मंदिर के पूर्व में मां दुर्गा का मंदिर, पश्चिम में चैती काली, दक्षिण में महामाया, उत्तर पूर्वी दिशा में गोरखचंडी का स्थान है। उन्होंने बताया कि भक्तों के लिए मंदिर प्रशासन और स्थानीय प्रशासन की तरफ से सीसीटीवी के अलावा सुरक्षा बल की तैनाती भी की गई है।

कटिहार में कई प्राचीन शिवमंदिर:



''मनिहारी का अर्धनारीश्वर शिवमंदिर''



कटिहार जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर मनिहारी अनुमंडल स्थित शिव मंदिर काफी प्राचीन है। साथ ही इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। इस शिवलिंग में दो भाग है, जो एक दूसरे से जुडे हुए हैं। इसे भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप माना जाता है। मां पार्वती शिवलिंग के मध्य भाग में जुड़ी हुई है। कटिहार के ऐतिहासिक शिवमंदिरों में एक हसनगंज प्रखंड अवस्थित भारीडीह शिवमंदिर है जिसे सन 1822 में सूरवंश के राजा राजेन्द्र नारायण राय ने निर्माण करवाया था।



''सौरिया का ऐतिहासिक शिवमंदिर''



कटिहार जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर डंडखोरा प्रखंड के सौरिया में अवस्थित प्राचीन शिव मंदिर से राज परिवार कि यादें जुड़ी हुई है। वर्ष 1822 में रानी इंद्रावती द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। यह मंदिर तत्कालीन स्थापत्य कला के अनूठे नमूनों के रूप में आज भी दर्शनीय है।