हाईकोर्ट ने 28 साल पूर्व हत्या मामले में दो आरोपितों को किया बरी
कोर्ट ने कहा, अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में नाकाम रहा
प्रयागराज, 03 जून । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिजनौर के कोतवाली थाने में 28 साल पहले हुई हत्या के मामले में दो आरोपितों को राहत देते हुए बरी कर दिया है।
अदालत ने माना कि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था और अभियोजन पक्ष पूरी तरह से संदेह से परे घटनाओं और परिस्थितियों की पूरी श्रृंखला को साबित करने में नाकाम रहा है जो दोनों अपीलकर्ताओं की भूमिका को स्थापित कर सके। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने सुरेश उर्फ चावेनी और मुकेश दोनों की अलग-अलग अपीलों पर एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि संदेह सबूत की जगह नहीं ले सकता है। इसलिए अदालत को सतर्क रहना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि अनुमान और संदेह कानूनी सबूत की जगह नहीं लेते हैं।
मामला 13 अक्टूबर 1994 का है। बिजनौर के कोतवाली थाने में सुरेंद्र सिंह की हत्या मामले में सत्र न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अपीलकर्ताओं ने सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए पाया कि निचली अदालत ने रोशन लाल एवं अन्य की गवाही के आधार पर दोनों आरोपितों को दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने पाया कि गवाहों के बयान में विरोधाभास है। जिसे निचली अदालत ने हल्के ढंग से खारिज नहीं किया।
कोर्ट ने कहा कि हत्या से पहले मृतक को आरोपितों के साथ किसी ने देखा नहीं। इसलिए आरोपितों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आधार ही संदिग्ध प्रतीत होता है और अभियोजन की कहानी पर संदेह पैदा करता है। इस प्रकार दोषसिद्धि का निर्णय टिकाऊ नहीं पाया गया और रद्द कर दिया गया। कोर्ट ने अपीलकर्ताओं को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया।