उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य को एसीजेएम कोर्ट से मिली राहत, अर्जी खारिज
उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य को एसीजेएम कोर्ट से मिली राहत, अर्जी खारिज
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को कथित फर्जी डिग्री मामले में एसीजेएम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। प्रयागराज की एसीजेएम कोर्ट ने फर्जी डिग्री मामले को लेकर दाखिल अर्जी खारिज कर दी है।
एसीजेएम नम्रता सिंह ने अपराध के गम्भीर न होने और प्रार्थना पत्र को आधारहीन मानते हुए अर्जी खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में किसी भी थाने में कोई मुकदमा दर्ज नहीं है। भाजपा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता दिवाकर त्रिपाठी की ओर से दाखिल अर्जी में फर्जी डिग्री लगाकर चुनाव लड़ने और पेट्रोल पम्प हासिल करने का आरोप लगाया गया था। अर्जी में फर्जी डिग्री के आधार पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का निर्वाचन रद्द करने और पेट्रोल पम्प का आवंटन भी निरस्त करने की मांग की गई थी। एसीजेएम कोर्ट ने याची अधिवक्ता उमाशंकर चतुर्वेदी की बहस सुनने और एसएचओ कैंट की ओर से प्रारम्भिक जांच रिपोर्ट दाखिल होने के बाद कोर्ट ने एक सितम्बर को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था।
गौरतलब है कि, डिप्टी सीएम की कथित फर्जी डिग्री को लेकर दाखिल अर्जी पर एसीजेएम नम्रता सिंह ने एसएचओ कैंट को प्रारम्भिक जांच का आदेश दिया था। उन्होंने दो बिन्दुओं पर एसएचओ कैंट से रिपोर्ट भी मांगी थी। दिवाकर त्रिपाठी की ओर से दाखिल अर्जी में आरोप लगाया गया था कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की डिग्री फर्जी है। जिसके बाद कोर्ट ने उत्तर मध्यमा द्वितीय वर्ष के हिन्दी साहित्य सम्मेलन की डिग्री की जांच का आदेश दिया था। इसके साथ ही हाईस्कूल के फर्जी सर्टिफिकेट पर पेट्रोल पम्प हासिल करने के मामले में भी जांच का आदेश दिया था। एसीजेएम कोर्ट ने प्रियंका श्रीवास्तव बनाम स्टेट ऑफ यूपी के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर ही प्रारम्भिक जांच का आदेश दिया था। इस मामले में 19 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला दिया था।
डिप्टी सीएम पर आरोप है कि इसी डिग्री के आधार पर उन्होंने इंडियन आयल कारपोरेशन से पेट्रोल पम्प भी हासिल किया है जो कौशाम्बी में स्थित है। वरिष्ठ भाजपा नेता और आरटीआई एक्टिविस्ट ने आरोप लगाया है कि चुनाव लड़ने के दौरान जो अलग-अलग शैक्षिक प्रमाण पत्र लगाये गये हैं उसमें भी अलग-अलग वर्ष दर्ज है। इनकी कोई मान्यता नहीं है। दिवाकर त्रिपाठी ने स्थानीय थाना, एसएसपी से लेकर यूपी सरकार और केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में प्रार्थना पत्र देकर कार्रवाई की मांग की थी। लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर उन्होंने अदालत की शरण ली थी।