चन्नी जी, गुरु गोविंद सिंह जी भी बिहारी थे

आर.के. सिन्हा

चन्नी जी, गुरु गोविंद सिंह जी भी बिहारी थे

चरणजीत सिंह चन्नी के अल्पज्ञान पर अब तो ज्यादातर पंजाबियों को तरस आने लगा है। वे रूपनगर में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहते हैं कि यूपी, बिहार और दिल्ली के “भइया लोगो” को पंजाब में घुसने नहीं देंगे। उस वक्त उसी मंच पर विराजमान वहां उनकी पार्टी की लीडर प्रियंका गांधी मुस्कराते हुए तालियां बजा रही थीं। अब चन्नी जी को यह कौन बताए कि गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पटना साहिब में हुआ था और इस हिसाब से गुरु गोविंद सिंह जी भी जन्मजात बिहारी ही थे। अफसोस इस बात का है कि जब चन्नी जी देश को तोड़ने वाला बयान दे रहे थे तब प्रियंका गांधी ने अपने मुख्यमंत्री को कसा नहीं। अगर वे चन्नी जी को वहां सबके सामने फटकार लगातीं तो उनके प्रति सम्मान का भाव जागता। लेकिन, उन्हें शायद यह पता नहीं चला कि चन्नी उनके पूरे खानदान को भी गली दे रहे हैं, क्योंकि नेहरू खानदान का सम्बन्ध तो “आनंद-भवन” प्रयागराज से ही है। मोतीलाल नेहरू के पिता की विरासत खंगालेंगे तो अनावश्यक विवाद हो जायेगा।

अब तो शक होने लगा है कि बिहारियों और यूपी वालों को ललकारने वाले चन्नी जी को यह भी शायद नहीं पता होगा कि पटना में जन्मे सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह साहिब ने ही ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित करते हुए गुरु परंपरा को खत्म किया था। इसके लिए साल 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिखों के लिए यह घटना सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। गुरु गोविन्द सिंह जी सिर्फ सिखों के लिए ही नहीं, सारे बिहार और देश के लिए परम आदरणीय हैं।

किसी भी सूरत में सत्ता पर काबिज होने की चाहत में चन्नी जी ने न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि करोड़ों दलितों के आराध्य संत गुरु रविदास का भी अपमान किया है। उन्हें मालूम ही नहीं कि संत गुरु रविदास का जन्म वाराणसी में हुआ था। उन्हें इतना तो पता ही होगा कि भक्ति आंदोलन के महा प्रसिद्ध संत रविदास के भक्ति गीतों और छंदों ने भक्ति आंदोलन पर स्थायी प्रभाव डाला है। संत गुरु रविदास के पंजाब में जगह-जगह पर गुरुद्वारे हैं। चन्नी जी को क्या बताएं कि जिस उत्तर प्रदेश का वे इस भाव से अनादरपूर्वक जिक्र कर रहे हैं उसके प्रथम मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत ने देश के बंटवारे के कारण भारत आए लाखों पंजाबियों को हिमालय की तराई में लाखों एकड़ भूमि लगभग मुफ्त में दी थी, ताकि वे सम्मान के साथ अपना जीवन गुजार सकें। अब उन लोगों की मौजूदा पीढ़ियां सुखी जीवन व्यतीत कर रही हैं।

चन्नी जी यह भी जान लें कि उत्तर प्रदेश और बिहार का भी पंजाब, पंजाबियों और सिख धर्म से गहरा संबंध रहा है। इसके अलावा इन सूबों ने पंजाबी हिन्दू या सिखों को 1947 के बाद गले लगाया था जब ये देश के बंटवारे के बाद सरहद के उस पार से भारत आए थे। उत्तर प्रदेश के हरेक शहर में पंजाबियों के मोहल्ले मिलेंगे। कानपुर के गुमटी इलाके में हजारों सिख देश के विभाजन के बाद आकर बसे। उन्होंने उत्तर प्रदेश को अपनी मेहनत-मशक्कत से समृद्ध भी किया।

इसी तरह से बिहार और झारखंड में हजारों पंजाबी आए। बिहार और झारखंड ने इन्हें अपनाया। इंदर सिंह नामधारी को सारा बिहार और झारखंड आदर के भाव से देखता है। उनका परिवार भी मूल रूप से बिहारी नहीं है। संयुक्त बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे और बिहार प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके नामधारी जी झारखंड बनने के बाद उसकी विधानसभा के पहले अध्यक्ष बने। बिहार या झारखंड ने उन्हें बाहरी नहीं माना। नामधारी जी का व्यक्तित्व दूरदर्शी है। उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा को अधिक महत्व दिया। भाषायी ज्ञान को बढ़ावा दिया। भारतीय जनता पार्टी के नेता एस.एस. आहलूवालिया भले ही पश्चिम बंगाल में सियासत करते हों पर उनका संबंध बिहार/ झारखंड से ही है।

बेशक, चन्नी जी के बिहार और यूपी वालों को लेकर दिये बयान से इन राज्यों में बसे पंजाबी अवश्य आहत हुये होंगे। चन्नी जी को अगर बिहार के समाज और इतिहास का रत्ती भर भी ज्ञान होता तो वे अपना उपर्युक्त बयान न देते। उन्हें यह पता ही नहीं कि बिहार देश के ज्ञान का केन्द्र या राजधानी रहा है। महावीर, बुद्ध और चार प्रथम शंकराचार्यों में एक (मंडन मिश्र) और भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तक को बिहार ने ही दिया। ज्ञान प्राप्त करने की जिजीविषा हरेक बिहारी में सदैव बनी रहती है। बिहारी के लिए भारत एक पत्रिव शब्द है। वह सारे भारत को ही अपना मानता है। वह मधु लिमये, आचार्य कृपलानी से लेकर जार्ज फर्नाडीज तक को अपना नेता मानता रहा है और उदारतापूर्वक बिहार से लोकसभा में भेजता रहा है।

मैं यहां बिहार की राजधानी पटना में स्थित एक पुरानी पंजाबी कॉलोनी का अवश्य उल्लेख करूंगा। यहां के निवासी अपने को बिहारी पंजाबी कहने में गर्व महसूस करते हैं। ये 1947 के बाद शरणार्थी के तौर पर पटना आए थे। इन्होंने यहां पर अपनी दुनिया बसा ली। ये अपने बच्चों की शादी बिहार के विभिन्न जिलों में बसे पंजाबी परिवारों में ही करते हैं। दरअसल देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के आदेश के बाद ही बिहार सरकार ने चितकोहरा बाजार के निकट इनके लिए पंजाबी कॉलोनी बसाई थी। तब बिहार में सैकड़ों पंजाबी परिवारों को बसाया गया था। इनका पंजाब से अब कोई रिश्ता नाता नहीं रहा। मेरे साथ पाल परिवार के बच्चे पढ़ते थे। वे चौदह भाई थे। पाल अंदल घर पर ही रंग-बिरंगी लेमनचूस बनाकर खुद ही साइकिल से घर-घर जाकर बेचते थे। फिर अंदल ने स्टेशन के पास ही एक “पाल-होटल” बनाया जो पटना का सबसे लोकप्रिय रेस्टोरेंट बना। आज सभी भाइयों के अनेकों होटल तथा अन्य कई प्रतिष्ठित व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं।

यही बात उत्तर प्रदेश के लिए भी कही जा सकती है। उत्तर प्रदेश ने सदैव पंजाबियों को गले लगाया है। एक बात और कि उत्तर प्रदेश कभी देश के खिलाफ खड़ा नहीं होगा। राम और कृष्ण का उत्तर प्रदेश मूलत: और अंतत: समावेशी है। उत्तर प्रदेश ही ऐसा प्रदेश है जो एक बंगाली महिला सुचेता कृपलानी को अपना मुख्यमंत्री बनाता है। शहीद-ए-आजम भगत सिंह के क्रांतिकारी जीवन को गति देने में कानपुर का योगदान रहा। कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी जी के अखबार ‘प्रताप’ में नौकरी करते हुए उनकी राजनीतिक दृष्टि और साफ हुई। इसी कानपुर शहर ने गैर-हिन्दी भाषी एस.एम. बनर्जी को बार-बार अपना सांसद चुना। इसी उत्तर प्रदेश ने सिख राजेन्द्र सिंह हंस को अपनी रणजी ट्रॉफी क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया। उधर, बिहार ने भी एक सिंधी परिवार से संबंध रखने वाले हरि गिडवाणी को अपनी रणजी ट्रॉफी टीम की कप्तानी सौंपी। आपको इस तरह के सैकड़ों उदाहरण मिल सकते हैं। चन्नी जी, जान लें कि बिहार या यूपी के लोग किसी पर बोझ नहीं, बल्कि दूसरों का बोझ उठाने वाले होते हैं।

दरअसल बीते कुछ सालों से बिहार-यूपी की जनता के ऊपर अनाप-शनाप बकने का फैशन-सा हो गया है। कुछ साल पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि “बिहार के लोग (उनका तात्पर्य झारखंड समेत समस्त पूर्वॉंचल से था) दिल्ली में 500 रुपये का टिकट लेकर आ जाते हैं और फिर लाखों रुपये का सरकारी अस्पतालों से मुफ्त इलाज करवाकर वापस चले जाते हैं। क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री को इतना संवेदनहीन और सड़क छाप होना शोभा देता था? अब वही केजरीवाल पंजाब की सत्ता पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राज करना चाहते हैं। क्या दिल्ली के अस्पतालों में इलाज के लिए बिहारियों का आना निषेध हो? क्या दिल्ली में अन्य राज्यों का कोई हक ही नहीं है ? क्या दिल्ली बिहार वालों की राजधानी नहीं है ? क्या एम्स जैसे श्रेष्ठ अस्पताल में कोई बिहार वासी इलाज न करवाए? चन्नी और केजरीवाल ने अपनी बयानबाजी से देश को निराश किया है।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)